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मैं कौन हूँ ....

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  जब आप अध्यात्मिक मार्ग की यात्रा करते हुए या फिर अध्यात्म को समझना चाहते हैं, तो जो प्रश्न सबसे पहले हमारे भीतर से ही आवाज देता है... वह है मैं कौन हूं ?? क्या मैं वास्तव में एक शरीर मात्र हूं या शरीर से हटकर भी कुछ और मेरा वास्तविक स्वरूप है, इस शरीर के बोध के कारण ही मैं इस संसार रूपी माया में उलझा रहता हूं। बार-बार यह प्रश्न मेरे मन में आकर मुझे भीतर से झंझोर देता है जब तक मनुष्य इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज लेता तब तक उसकी आध्यात्मिक यात्रा अधूरी है। जगतगुरू आदि शंकराचार्य से उनके पूज्य गुरुदेव जी गोविंद पाद ने पूछा कि तुम कौन हो? तो उत्तर जो दिया इसे आज हम निर्वाण षटकम् के माध्यम से जानते हैं... न मन हूं न बुद्धि न चित्त अहंकार.... "मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥ यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बोध मात्र से मनुष्य योनि के गंतव्य को प्राप्त हुआ जा सकता है, एवं मनुष्य योनि से तरा जा सकता है। जब भी यह प्रश्न आप किसी व्यक्ति से करते हैं कि आप कौन हैं, तो अमुक व्यक्ति अपना परिचय अपने न