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Showing posts from February, 2022

आध्यात्मिक जीवन

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आध्यात्म एक अलग ही शैली है संसार को समझ कर संसार से विलग होने का मार्ग , जीवन जीने की एक ऐसी शैली जो स्वयं में परिपूर्ण हैं, जो स्वयं के अस्त्वि को निखारते हुए हमें हमारे वास्तविक अस्तित्व का बोध कराने में सहायक हैं... आखिर कार   आध्यात्म क्या हैं...?? कैसे आध्यात्म की ओर बढ़े..? आध्यात्म में आने वाली बाधाएं क्या हैं..?  आध्यात्मिक जीवन में संघर्ष क्यों..?  आध्यात्म क्या हैं... आज मनुष्य अत्यंत व्याकुल हैं, उसकी व्याकुलता का क्या कारण हैं उसे ज्ञात भी नहीं, बस इस मायावी संसार की माया में उलझा हुआ हैं और अपने कर्मों से और उलझता जा रहा हैं। इस कर्म प्रधान संसार में क्या उसका व्यवहार हो..? किस प्रकार वह इस संसार को समझें..? क्या उसके कर्म व संस्कारों की गति हो..?  संसार क्या हैं..?  माया क्या है..?  कर्म क्या हैं? वास्तविकता क्या हैं जो इस हाण मांस के शरीर से बनी दो नेत्र इन्द्रियों से दिखलाई पड़ता हैं या फिर इन सबसे भी परे बहुत कुछ हैं जो हमारी क्षमता से बहुत दूर हैं। कौन हैं जो उससे कर्म करता हैं..?  कर्म का कारण क्या हैं..?  विचार क्या हैं..? कौन विचार करता हैं? विचार कहाँ से आते हैं

अष्टांग योग साधना (धारणा, ध्यान, समाधि )

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 अष्टांग योग साधना के अंतिम पढ़ाव में हम अंतरंग साधना के अंतर्गत आने वाले धारणा, ध्यान व समाधि को जानेंगे। पूर्व के लेखों में हमने जाना किस प्रकार साधक स्वयं के चित्त को शुद्ध कर आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार का अभ्यास करते हुए चित्त की चंचलता को स्थिरता में ला अष्टांग योग के उच्चोत्तर अंग धारणा, ध्यान व समाधि की ओर अग्रशील होता एवं इन्हें सिद्ध करते हुए जीवन और योग के परम लक्ष्य समाधि को प्राप्त कर सकता हैं।  धारणा... अंतरंग साधना में धारणा ध्यान के पूर्व की तैयारी हैं, प्रत्याहार में हमने जाना इन्द्रियों के विषयों को अंतर्मुख करना प्रत्याहार हैं एवं इस अवस्था किसी एक विषय को ध्येय बनाकर मन को एकाग्र करने की अवस्था 'धारणा' हैं। धारणा संस्कृत के 'धृ' धातु से बना हैं जिसका अर्थ होता हैं - 'आधार व नीव '। धारणा अर्थात 'ध्यान की नीव' व 'ध्यान की आधारशिला' हैं।   महर्षि पतंजलि धारणा के स्वरुप को स्पष्ट करते हुए बताते हैं - देशबन्धश्चित्तस्य धारणा ॥ ३.१॥‌ चित्तस्य - चित्त को देश - आंतरिक /शरीर स्थित किसी स्थान (नाभि, हृदय या माथे) पर बन्ध:- बा