कर्म, प्रारब्ध, संस्कार व नियति...
"प्रारब्ध और संस्कारों के अनुकूल भोग करता जीवन, नए संस्कारों की नींव डालता जाता है परंतु वह करता कुछ नहीं, सब कुछ एक महान शक्ति के गुरुत्वाकर्षण में होता रहता है। मनुष्य तो कर्मानुकूल संस्कारों द्वारा निर्मित एक खिलौना मात्र है। " (महायोगी पायलट बाबा ) {श्रोत -हिमालय केह रहा भाग 1, पृष्ठ 50 } इस से पूर्व के लेख में हमनें मनुष्य जीवन का महत्व व लक्ष्य को जानने का प्रयास किया, किन्तु मनुष्य जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना इतना सहज नहीं जितनी सहजता के साथ इसे व्यक्त, लिखा व समझा जा सकता हैं। मनुष्य अपने वास्तविक धेय को पहचान जब आगे को बढ़ता हैं तो उस दौरान उसे कई चुनौतियां व संघर्ष का सामना करना होता हैं क्यूंकि पीछे बहुत बड़े कर्मों की श्रृंखला रहती जिसे पार करने हेतु अत्यंत दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना होता हैं एवं इस दौरान जो प्रश्न उसके समक्ष आ खड़े होते हैं.... * क्यों मनुष