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Showing posts from December, 2021

कर्म, प्रारब्ध, संस्कार व नियति...

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 "प्रारब्ध और संस्कारों के अनुकूल भोग करता जीवन, नए संस्कारों की नींव डालता जाता है परंतु वह करता कुछ नहीं, सब कुछ एक महान शक्ति के गुरुत्वाकर्षण में होता रहता है। मनुष्य तो कर्मानुकूल संस्कारों द्वारा निर्मित एक खिलौना मात्र है। "                                                                                                           (महायोगी पायलट बाबा )                                                                                                        {श्रोत -हिमालय केह रहा भाग 1, पृष्ठ 50 } इस से पूर्व के लेख में हमनें मनुष्य जीवन का महत्व व लक्ष्य को जानने का प्रयास किया, किन्तु मनुष्य जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करना इतना सहज नहीं जितनी सहजता के साथ इसे व्यक्त, लिखा व समझा जा सकता हैं। मनुष्य अपने वास्तविक धेय को पहचान जब आगे को बढ़ता हैं तो उस दौरान उसे कई चुनौतियां व संघर्ष का सामना करना होता हैं क्यूंकि पीछे बहुत बड़े कर्मों की श्रृंखला रहती जिसे पार करने हेतु अत्यंत दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना होता हैं एवं इस दौरान जो प्रश्न उसके समक्ष आ खड़े होते हैं.... * क्यों मनुष

मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या हैं....??

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आ ज मनुष्य अत्यंत व्यस्त है, उसके पास स्वयं के लिए भी समय नहीं बस भागा जा रहा है... भागा जा रहा है, यह भाग भरा जीवन किस हेतु , किसी को पैसा चाहिए, किसी को मान -सम्मान, कोई उच्च पद पर आसीन होना चाहता है, किसी को सुख की अभिलाषा हैं। इस व्यस्त भरे जीवन में कोई राजनेता बनना चाहता है, तो कोई समाज सेवक, कोई कलाकार तो कोई वैज्ञानिक बन विज्ञान के विभिन्न अनसुलझें प्रश्नों की खोज में लगा है, कोई डॉक्टर बन काम कर रहा हैं, तो कोई सिपाही बन देश की सुरक्षा हेतु सीमाओं पर तैनात हैं। यदि किसी व्यक्ति से आप पूछों की तुम्हारें जीवन का ध्येय क्या हैं तो ऊपर वर्णित विभिन्न क्षेत्रों में से एक उस व्यक्ति का लक्ष्य भी होगा। तो इस प्रकार व्यक्ति /मनुष्य जीवन का एक मात्र ध्येय इस भौतिक जगत में अपनी अपनी इच्छाओं के अनुरूप इस सांसारिक विषयों को पाना ही क्या उसका अंतिम लक्ष्य हैं..? क्या इस सांसारिक क्षणभंगुर सुख को पाकर या उच्च पद पर आसीन हो या फिर अरबपति बन वह उस परम शांति, आनंद या पूर्ण स्थायीत्व को प्राप्त कर सकता है जो शाश्वत हैं, चिर स्थाई हैं। इसी स्थाईत्व व आनंद को पाने हेतु जाने अनजाने वह अपने लक्ष्य क

अहंकार विभिन्न समस्याओं का कारण....

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आज वर्तमान में जो भी समस्याएं हमें चारों ओर परिलक्षित होती दिखती हैं, वे कहीं ना कहीं अहंकार का ही परिणाम है। ये समस्याएं व्यक्तिगत स्तर से आरंभ हो वैश्विक स्तर तक मौजूद है... व्यक्तिगत स्तर पर अहंकार व्यक्ति के जीवन को समूल रूप से नष्ट कर देता है, पारिवारिक स्तर पर अहंकार के कारण परिवार विघटन, विवाह विच्छेद जैसे प्रकरण आजकल सामान्य है, सामाजिक स्तर पर भेदभाव की नीति, जातिवाद, महिलाओं को सामान्य अधिकार प्राप्त ना होना अहंकार का ही नतीजा है, राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्र से अधिक स्वार्थ को महत्व देना.. राष्ट्र धर्म का पालन ना कर स्वार्थ सिद्धि के लिए कार्य करना भी अहंकार का ही रूप है, वैश्विक स्तर पर एक देश द्वारा अन्य देशों पर वर्चस्व कायम कर समूचे विश्व पर राज करने की नीति भी अहंकार ही को दर्शाता है अर्थात अहंकार का विशालकाय रूप व्यक्ति से लेकर समूचे विश्व को अपने घेरे में लिए हुए हैं... अहंकार का इतना विस्तृत रूप लेने का कारण अहंकार का इतना विस्तृत रूप लेने का मुख्य कारण है मनुष्य की अहंकार की प्रति सीमित समझ या ये कहे कि अहंकार क्या है इसकी वास्तविक समझ ना होना... अहंकार क्या है