Posts

Showing posts from September, 2020

इच्छाओं का होना स्वाभाविक... 

Image
 ऐसा कहाँ जाता हैं की मनुष्य की इच्छाएं ही दुख का  प्रमुख  कारण हैं... विभिन्न सम्प्र्दयो चाहे जैन धर्म हो य बौद्ध धर्म तृष्णा के त्याग को ही सुख का मार्ग व मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना गया हैं... परन्तु वास्तव मैं मनुष्य जीवन मैं    इच्छाओं का त्याग संभव हैं?. .. इसका उत्तर है नहीं।  मेरे गुरुदेव कहते हैं की इच्छाओं को त्यागो मत उन्हें दिशा दो... ताकि वे भौतिक वाद मैं जकड़ कर महत्वकांक्षी ना हो... ज़ब व्यक्ति सांसारिक माया जाल मैं फस कर अशक्त हो कर इच्छा की चाहा रखता, उस का त्याग ही तृष्णाओं का वास्तविक त्याग हैं... भारतीय शास्त्रों मैं इन्हें वासनायेें भी कहाँ गया हैं... ये तीन प्रकार की हैं -: 1. लोक वासना 2. शास्त्र वासना 3. शरीर वासना    इन्हीं वासनाओें के इर्द- गिर्द ही मनुष्य का जीवन घूमता हैं... लोक वासना इस लोक मैं अच्छे कर्म करके दूसरे लोक मैं स्वर्ग की कामना लोक वासना हैं। शास्त्र वासना से तात्पर्य.. शास्त्रों का ज्ञान पाकर अत्यंत श्रेष्ठ होने की महत्वाकांक्षा। शरीर वासना मैं शरीर के प्रति मोह व शरीर सदा ऐसा ही बना रहे इसकी कामना होती हैं। किन्तु इसके अतिरिक्त

वेराग्य और अनासक्ति.....

Image
 ईश्वर ने जब इस जगत की रचना की तो इस सृष्टि की संकल्पना को पूर्ण करने हेतु योनियों का सृजन किया। भारतीय शास्त्रों के अनुसार इस सृष्टि पर 8400000 योनियों है, इन सभी योनियों से होकर मनुष्य को मुक्ति (मोक्ष )की प्राप्ति होती है।  इनमें से मनुष्य योनि को सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ माना है क्योंकि एकमात्र मनुष्य योनि के द्वारा ही जीव अपने अंतिम गंतव्य मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। शास्त्रों का कथन हैं कि मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मनुष्य जीवन से ही होकर गुजरता है, क्योंकि एक मात्र मनुष्य को ईश्वर ने 'विवेक' दिया है..... विवेक के माध्यम से ही उसके मोक्ष के द्वार खुलते हैं। शास्त्रों में मोक्ष प्राप्ति के चार साधनों का वर्णन है.... " नित्यानित्यवस्तुविवेक:। इहामुत्रार्थफलभोगविराग :।शमादिषट्क सम्पति :मुमुक्षत्वं चेति। " नित्य अनित्य वस्तु विवेक इस और परलोक के भोग से वैराग्य, शमादि छ : संपत्ति और मुमुक्षा है। गुरु आदि शंकराचार्य ने इसका विस्तार से वर्णन अपनी पुस्तक "विवेक चूड़ामणि "में किया है। मोक्ष की प्राप्ति हेतु