इच्छाओं का होना स्वाभाविक...
ऐसा कहाँ जाता हैं की मनुष्य की इच्छाएं ही दुख का प्रमुख कारण हैं... विभिन्न सम्प्र्दयो चाहे जैन धर्म हो य बौद्ध धर्म तृष्णा के त्याग को ही सुख का मार्ग व मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना गया हैं... परन्तु वास्तव मैं मनुष्य जीवन मैं इच्छाओं का त्याग संभव हैं?. .. इसका उत्तर है नहीं। मेरे गुरुदेव कहते हैं की इच्छाओं को त्यागो मत उन्हें दिशा दो... ताकि वे भौतिक वाद मैं जकड़ कर महत्वकांक्षी ना हो... ज़ब व्यक्ति सांसारिक माया जाल मैं फस कर अशक्त हो कर इच्छा की चाहा रखता, उस का त्याग ही तृष्णाओं का वास्तविक त्याग हैं... भारतीय शास्त्रों मैं इन्हें वासनायेें भी कहाँ गया हैं... ये तीन प्रकार की हैं -: 1. लोक वासना 2. शास्त्र वासना 3. शरीर वासना इन्हीं वासनाओें के इर्द- गिर्द ही मनुष्य का जीवन घूमता हैं... लोक वासना इस लोक मैं अच्छे कर्म करके दूसरे लोक मैं स्वर्ग की कामना लोक वासना हैं। शास्त्र वासना से तात्पर्य.. शास्त्रों का ज्ञान पाकर अत्यंत श्रेष्ठ होने की महत्वाकांक्षा। शरीर वासना मैं शरीर के प्रति मोह व शरीर सदा ऐसा ही बना रहे इसकी कामना होती हैं। किन्तु इसके अतिरिक्त