Posts

Showing posts from September, 2023

ऊर्जा स्थलों का पुनरुद्धार

Image
इस लेख में आध्यात्म और राजनीति दोनों क्षेत्रों को समन्वय बना कर लिखा गया हैं। सनातन धर्म में ऊर्जा स्थलों का अत्याधिक महत्व हैं। सर्वप्रथम प्रश्न बनता हैं की यह ऊर्जा स्थल है क्या..? ऊर्जा स्थल अर्थात ऐसे स्थल जहाँ प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता या सार्थकता को पाया जा सकता हैं। भारत एक ऐसा देश हैं जहाँ इन स्थलों को शक्ति पीठ, ज्योतिर्लिंग, चार धाम और विभिन्न मंदिरों और तीर्थ के रूप में जाना जाता हैं। यहीं कारण रहा की हमारे प्राचीन ऋषि मनीषीयों ने इन स्थलों को धर्म से जोड़ तीर्थ स्थल का दर्ज़ा दिया। ताकि व्यक्ति इसी बहाने यहाँ पहुंचे और इन स्थलों से ऊर्जा पाकर जीवन को सही दिशा देकर परमार्थ की ओर बड़े। किन्तु हमने देखा पिछले कुछ सदियों से यह स्थल अपने स्थान पर तो रहें किन्तु इनकी अवस्था में निरंतर गिरावट चिंता का विषय रहा सभी के लिए। आजादी के उपरांत भी इन स्थलों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया और यदि यही स्थिति बनी रहती तो आने वाले कुछ वर्षों में यह स्थल लुप्त होने की कगार पर भी पहुंच सकते थे। किन्तु कहा गया हैं ईश्वर के पास द

शिक्षा

Image
"मनुष्य की अंतरनिहित पूर्णतः को अभीव्यक्त करना ही शिक्षा हैं। " स्वामी विवेकानंद  शिक्षा का वास्तविक अर्थ क्या और किस प्रकार वह मनुष्य के ज्ञान अर्जन हेतु सहायक हैं, इसे समझना भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आज इस कलयुगी वातावरण में शिक्षा का अर्थ डिग्री को संग्रहित कर नौकरी पाने और पैसा अर्जित करने तक सिमित कर दिया गया हैं। आज जिस के पास जितनी अधिक डिग्री होंगी वह उतना पड़ा लिखा और श्रेष्ठ कहलाता हैं, ये मायने नहीं रखता की उसने डिग्री कैसे प्राप्त की और वास्तव में वह कुछ योग्य भी है या नहीं। इस प्रकार कई उदाहरण आज कल देखने को मिलते हैं, जिन्हें देख वह व्यक्ति शिक्षित हैं भी या नहीं शंका होती है। अभी कुछ माह पूर्व ही तथाकथित पार्टी के एक चर्चित नेता द्वारा देश के प्रधानमंत्री जी को अनपढ़ और अशिक्षित (उनके द्वारा लिए गए तात्कालिक निर्णय के विरुद्ध )बोल कई प्रकार से कई अन्य गलत भाषा शैली का प्रयोग किया गया। यह सब देख मैं अत्यंत अचंभित हुई और विचार करने लगी की इस प्रकार एक चर्चित पार्टी के चर्चित नेता द्वारा लाइव टीवी पर आकर अनियंत्रित भाषा का प्रयोग कर देश के प्रधान

जीवन में आध्यात्म

Image
जीवन हैं तो संघर्ष है, इसी संघर्ष से गुजरते हुए जो समतल जीवन व्यतीत करता हैं, वास्तव में वही विजेता हैं, आज गृहस्थ जीवन के अपने संघर्ष हैं, संयस्थ के अपने, छात्र जीवन के अपने, जो इन्हे समझते हुए आगे बढ़ता हैं वही जीवन में सफलता और सार्थकता को पाता हैं ... तो हम में से अधिकांश इस संघर्ष से लड़ते लड़ते जीवन में उलझ से जाते हैं और यही से जीवन में आरम्भ होता है तनाव, चिंता, भय जो आगे जा कर रोग का कारण बनता हैं। आज प्रतेक मनुष्य के जीवन में यही उलझने तनाव का कारण हैं, गृहस्थ जीवन में पति पत्नी के मध्य तनाव, पारिवारिक कलेश, छात्र जीवन में प्रतिस्पर्धा और उच्च रोजगार पाने का तनाव, नौकरी में ऊंचे पद सम्मान पाने के लिए खींचा तानी, राजनैतिक स्तर पर सत्ता को पाने के लिए उठा पटक। आज प्रतेक क्षेत्र व जीवन में इस प्रकार का तनाव, चिंता देखना सामान्य है। इसे समझने हेतु हमें जीवन को समझना होगा, आज क्यों यह स्थिति उत्पन्न हुई, इस का मुख्य कारण हैं हम अपने मूल से दूर हो चुके, उस ज्ञान व परम्परा से जो आध्यात्म की जननी रही। वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण और गीता का यदि निरंतर अध्ययन शील हो चिंतन

ब्रह्मचर्य

Image
जब भी साधना की चर्चा होती हैं तो इस के तहत की जाने वाली ब्रह्मचर्य साधना को अधिक कठिन और नियमों के अनुरूप चलने वाली साधना के रूप में जाना जाता हैं। ब्रह्मचर्य एक ऐसी साधना हैं जिसे ना सिर्फ सनातन धर्म के ष्ठ : दर्शनों में योग दर्शन के तहत अष्टांग योग में विशेष स्थान प्राप्त है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी ब्रह्मचर्य को विशेष और महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं। ज़ब इतिहास को देखते हैं तो पाते हैं की वैदिक काल के समय जीवन को सुव्यवस्थित ठंग से जीने हेतु अत्यंत सुन्दर तरीके से विभाजित किया गया- * ब्रह्मचर्य( 5 वर्ष से लेकर 25वर्ष तक ) * गृहस्थ ( 25 से 50 वर्ष तक ) * वान प्रस्थ ( 50 से 75 तक ) * संयस्थ (75 से...) अतः हमने देखा की ब्रह्मचर्य साधना का कई धर्मों में विशेष स्थान हैं। किन्तु सामान्य जीवन में हम कही ना कही इस विषय पर चर्चा करने से कतराते हैं या संकोच करते हैं। तो आज हम इस लेख में ब्रह्मचर्य का अर्थ और इसके महत्व को जनाने का प्रयास करेंगे। ब्रह्मचर्य को यदि सरल भाषा में समझें तो यह दो शब्दों का मेल हैं - ब्रह्म और चर्य, 'ब्रह्म' अर्थात सर्वस्य, सर्