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ऊर्जा की गति का आध्यात्मिक स्वरूप...

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समस्त ब्रह्मांड व सृष्टि एक ऊर्जा के अंतर्गत गतिशील हैं, प्रत्येक गति व क्रिया के पीछे ऊर्जा ही काम कर रही हैं। किसी भी वस्तु की क्रियाशील होने की क्षमता उसकी ऊर्जा पर ही निर्भर करती हैं। यदि विज्ञान की परिभाषा को देखें तो भी उर्जा निरंतर गतिशील है.. " ऊर्जा का क्षय नहीं होता वह तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होती हैं । यहीं ऊर्जा की परिभाषा भी है और नियम भी।" जिस प्रकार ऊर्जा सर्वत्र गतिमान है उसी प्रकार मनुष्य के भीतर भी  ऊर्जा गतिशील है, ऊर्जा के कारण मनुष्य कर्म करता है, कर्म ही संस्कार बनाता है, संस्कार से प्रारब्ध व नियति का निर्माण होता है। इस तरह मनुष्य योनि की अनंत क्षमताओं के पीछे भी  ऊर्जा ही क्रियाशील है, किस प्रकार यह ऊर्जा मनुष्य शरीर में कार्य करती हैं ? एवं इस ऊर्जा को समझ किस प्रकार इसे सही दिशा दी जाए  ? यहीं मनुष्य जीवन का परम कर्तव्य हैं। मनुष्य शरीर में 'मन की जो गति है ' वही ऊर्जा का रूप है। मन निरंतर सोच, विचार, कल्पनाओं, भावनाओं आवेग के साथ गतिशील है। यह गहन विचार का विषय है कि हमारे भीतर जो मन की गति के रूप में उर्जा निरंतर गति