धर्म
धर्म एक ऐसा शब्द हैं जो सर्वत्र इस संसार मे व्याप्त है, ईश्वर की प्रतेक कृति धर्म के अनुरूप कार्य करती हैं किन्तु आज इस कलयुगी वातावरण मे धर्म के अर्थ को ही विकृत कर दिया गया हैं, आज धर्म अर्थात हिन्दू, मुस्लिम, शिख व ईसाई। इस लेख को लिखने का मेरे मन में तब विचार आया ज़ब मैं अहमदाबाद से भोपाल की यात्रा कर रही थी, सामने की शीट पर बैठा एक लड़का गाना गुन गुनाने लगा "राम राम रे राजा राम, राम राम रे सीता राम " उसके मुख से यह गीत सुनते ही मेरे साथ पिताजी बोले हा हमें जल्द राम राज्य स्थापित करना हैं। ये सुनते ही वह लड़का बोल पड़ा नहीं सर मैं किसी एक धर्म मे विश्वास नहीं रखता मैं तो सेक्युलर(धर्म निरपेक्ष )हूँ ,मेरे मन मे तुरत प्रश्न उठा ऐसा कैसे संभव है कोई व्यक्ति धर्म से अलग कैसे हो सकता हैं, हाँ संभव है वह धर्म के विरुद्ध हो किन्तु धर्म से अलग होना संभव ही नहीं। इसका मुख्य कारण हैं धर्म का गलत अर्थ समझना, आरम्भ में संविधान में 'धर्म निरपेक्ष' शब्द का प्रयोग किया गया किन्तु बाद मे संसोधन कर उसे 'पंथ निरपेक्ष' कर दिया गया। उन्हें समझाने का मन मे विचार आया किन्तु ल