आध्यत्मिक अनुभव...
उर्जा जो निरंतर गतिशील और परिवर्तनशील हो ब्रह्माण्ड में विचरण कर रही है | यही उर्जा जब जीव के देह में प्रवेश करती है तो जीवात्मा कहलाती हैं | यह शाश्वत सत्य है की आत्मा अजर और अमर हैं | गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है - नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारूत: ।। इस श्लोक का अर्थ है: "आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है !!" (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की हैं ) यही आत्मा स्वयं शिव हैं। ब्रह्म हैं। चेतन्य और शक्ति रूपी उर्जा हैं। किन्तु जैसे ही यह आत्मा जीव रूपी देह में प्रवेश करती हैं तो उस सम्बंधित देह के बन्धनों ,संस्कारों और व्यवहार से बंध जाती हैं अर्थात आत्मा अजर हैं।अमर हैं। किन्तु देह के बंधन में आते ही परिस्थितियों में आ जकड़ती हैं। जब यह आत्मा 'श्वान' के देह में प्रवेश करती है तो उसका व्यवहार उस श्वान देह के अनुरूप होता हैं, यही व्यवहार संस्कारों की छाप छोड़ जाता हैं, जो आने वाले जन्मों के चित्त में समाहित ह