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Showing posts from January, 2022

अष्टांग योग साधना (आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार )

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योग साधना में महर्षि पतंजलि के योग सुत्र में वर्णित अष्टांग योग साधना के अंतर्गत हमने इस से पूर्व के लेखों में यम, नियम साधना को बिन्दुबार जाना व समझा। अपने आध्यात्मिक लेखों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार साधना को जानेंगे। साधक अष्टांग योग साधना के अंतर्गत यम व नियम का पालन करते हुए अपने मन और शरीर की अशुद्वियों को दूर कर मन व शरीर को स्थिर करने की ओर अग्रशील होता हैं.... आसन  साधक को आसन की साधना आरंभ करने से पूर्व आसन का स्पष्ट अर्थ ज्ञात होना नितांत आवश्यक हैं। वर्तमान युग में आसन अर्थात वे विभिन्न शारीरिक मुद्राएँ जो  योग कक्षाओं में सामान्यतः लोगों को सिखाई जा रहीं हैं, जैसे हलासन, मत्स्यासन, गोमुख आसन इत्यादि , किन्तु आसन को विभिन्न शारीरिक अवस्थाओं तक ही सिमित कर के समझाना उचित नहीं होगा।  जो विभिन्न योग कक्षाओं भिन्न भिन्न अवस्थाओं में शरीर को स्थिर करने की प्रक्रिया आज सिखाई जा रही हैं वह मूलतः हठ योग का भाग हैं। आसनों का सम्पूर्ण वर्णन हठ योग के ग्रंथो में ही उपलब्ध होता हैं, हठ योग प्रदीपिका का आसन के योग अभ्यास में प्रथम स्थान हैं, हठ योग में आसनों

अष्टांग योग में बहिरंग साधना (यम और नियम )

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योग और साधना दोनों ही शब्द आध्यात्मिकता की गहराइयों को दर्शाते हैं, ईश्वर से जीवआत्मा का एकात्म हो जाना जहां योग है वही इस एकात्म तक पहुंचने का मार्ग साधना है। जब भी योग साधना की बात की जाएं तो भारतीय दर्शन के छ: दर्शनों में से एक महर्षि पतंजलि के योग सूत्र के साधना पाद में वर्णित अष्टांग योग साधना एक विशिष्ट स्थान व महत्व रखती है। पतंजलि सूत्र में अष्टांग योग का अर्थ है साधना के वे आठ अंग जो ईश्वर से एकात्म की अनुभूति करा इश्वर में ही एकात्म हो जाए अष्टांग योग है। अष्टांग योग के अंतर्गत - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि शामिल हैं। अष्टांग योग साधना को बेहतर माध्यम से समझने हेतु साधक के लिए इसे दो भागों में विभक्त कर दिया गया है- *बहिरंग साधना -यम ,नियम ,आसन,प्राणायम,प्रत्याहार  *अन्तरंग साधना -धारणा,ध्यान ,समाधी  प्रारंभ के पांच अंग बहिरंग साधना वह अंतिम के तीन अंग अंतरंग साधना के रूप में पहचाने जाते हैं। चुंकि अष्टांग योग साधना एक गहरा व विस्तृत विषय है इसलिय इसे संपूर्ण रूप से एक लेख में लिखना आसान नहीं और इसे अति संछिप्त करना लेख के साथ न्याय

साधना

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साधना शब्द को सुनते ही जो शब्द हमारे मस्तिष्क में विचरण करने लगते हैं.. वे है योग, ध्यान, संत समाज , साधु, सन्यास, सन्यासी आदि । सामान्यतः लोग साधना का अर्थ इन्हीं शब्दों से जोड़कर देखते हैं| साधना अर्थात 'साध कर' आगे बढ़ना, किसे साथ कर आगे बढ़ना अपने जीवन के लक्ष्य को साधने हेतु किए गए दृढ़,अनुशासित एवं संकल्पित प्रयास ही 'साधना' हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किए गए प्रयास 'साधना' है। हमने अपने पूर्व के लेखों में मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य उसके मध्य आने वाली बाधाओं की चर्चा की थी। साधना किस प्रकार मनुष्य जीवन के वास्तविक लक्ष्य के समक्ष आड़े आने वाले कर्म बंधनों को हटाने में सहायक हैं, इसे जानने का प्रयास करेंगें। इन बाधाओं को समूल रूप से नष्ट करने का एक मात्र मार्ग आध्यात्मिक साधना है। अध्यात्मिक साधना के दौरान जिसे साधना हैं वह 'मन'हैं  जिसने मन को साधा उसने जीवन के परम लक्ष्य को भी साध लिया समझो। मन के विषय में पूर्व के लेख "मन के आयाम" में विस्तृत रूप से जान सकते हैं। प्रारंभिक दौर में एक आध्यात्मिक सा